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संसद में 'वंदे मातरम' की 150वीं वर्षगांठ: ऐतिहासिक विरासत और राजनीतिक संदर्भ

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संसद में 'वंदे मातरम' की 150वीं वर्षगांठ: ऐतिहासिक विरासत और राजनीतिक संदर्भ

संसद में 'वंदे मातरम' की 150वीं वर्षगांठ: ऐतिहासिक विरासत और राजनीतिक संदर्भ
09 Dec 2025
Table of Contents

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का वह उद्घोष, जिसने निहत्थे भारतीयों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खड़े होने का साहस भर दिया था, वह 'वंदे मातरम' आज अपनी रचना के 150वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान आज इस गीत की ऐतिहासिक यात्रा और राष्ट्र निर्माण में इसके योगदान पर विशेष चर्चा की गई। यह गीत केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि भारतीय राष्ट्रवाद की एक सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है।

8 दिसंबर, 2025 को लोकसभा में नियम 193 के तहत 'वंदे मातरम' की 150वीं वर्षगांठ पर चर्चा हुई। सत्ता पक्ष ने इसे "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रतीक" बताया, जबकि विपक्षी दलों ने इसके ऐतिहासिक संदर्भ और संवैधानिक स्थिति पर अपनी बात रखी। यह चर्चा इस गीत की रचना (1870 के दशक में) के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित की गई थी।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

1. उत्पत्ति और रचना:

  • रचयिता: बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (चटर्जी)।
  • समय: माना जाता है कि उन्होंने इसे 1876 के आसपास लिखा था।
  • प्रकाशन: यह गीत उनके प्रसिद्ध उपन्यास 'आनंदमठ' (Anandamath) में 1882 में प्रकाशित हुआ था। यह उपन्यास 18वीं सदी के संन्यासी विद्रोह (Sannyasi Rebellion) की पृष्ठभूमि पर आधारित है।
  • भाषा: यह संस्कृत और बंगाली का मिश्रण है।

2. स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:

  • पहला गायन: इसे पहली बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा गाया गया था (अध्यक्ष: रहमतुल्ला एम. सयानी)।
  • बंग-भंग आंदोलन (1905): लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल विभाजन के बाद, 'वंदे मातरम' स्वदेशी आंदोलन का मुख्य नारा बन गया। लोग इसे गाते हुए लाठियाँ खाते थे लेकिन झंडा नहीं छोड़ते थे।
  • अनुवाद: श्री अरविंदो (Sri Aurobindo) ने इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया और इसे 'मदर इंडिया' की अवधारणा से जोड़ा।

3. संवैधानिक दर्जा:

  • 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा के अंतिम सत्र में, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की कि:"जन गण मन को भारत के राष्ट्रगान (National Anthem) के रूप में और 'वंदे मातरम' को, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, समान सम्मान और दर्जा (National Song) प्राप्त होगा।"

राजनीतिक और सामाजिक विमर्श

विवाद के बिंदु:

ऐतिहासिक रूप से, इस गीत को लेकर कुछ समुदायों में आपत्तियाँ रही हैं। इसका मुख्य कारण गीत के बाद के छंदों में भारत माता की तुलना हिंदू देवी दुर्गा से करना है, जो मूर्तिपूजा के खिलाफ माने जाने वाले एकेश्वरवादी सिद्धांतों से टकराता है। यही कारण था कि कांग्रेस ने 1937 में केवल इसके पहले दो छंदों को ही 'राष्ट्रगीत' के रूप में स्वीकार किया था, जो पूरी तरह से प्रकृति और मातृभूमि की वंदना करते हैं।

वर्तमान प्रासंगिकता:

आज की संसदीय चर्चा का महत्व यह है कि क्या राष्ट्रगीत को राष्ट्रगान के बराबर कानूनी दर्जा दिया जाना चाहिए? वर्तमान में, अनुच्छेद 51A (a) में मौलिक कर्तव्यों के तहत केवल राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान की बात कही गई है, राष्ट्रगीत का इसमें स्पष्ट उल्लेख नहीं है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि दोनों समान सम्मान के पात्र हैं।

राष्ट्रगान बनाम राष्ट्रगीत

विशेषता

राष्ट्रगान (National Anthem)

राष्ट्रगीत (National Song)

शीर्षक

जन गण मन

वंदे मातरम

रचयिता

रवींद्रनाथ टैगोर

बंकिम चंद्र चटर्जी

पहला गायन (INC)

1911 (कलकत्ता)

1896 (कलकत्ता)

गायन अवधि

लगभग 52 सेकंड

कोई निश्चित समय सीमा नहीं

संवैधानिक उल्लेख

अनुच्छेद 51A (a) में वर्णित

संविधान में स्पष्ट उल्लेख नहीं (लेकिन परंपरा द्वारा मान्य)

Practice Questions

1. Prelims MCQ:

'वंदे मातरम' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास 'दुर्गेश नंदिनी' से लिया गया है।
  2. इसे पहली बार 1905 के बनारस अधिवेशन में गाया गया था।
  3. संविधान सभा ने इसे 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाया।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 3

(c) केवल 2 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b) (कथन 1 गलत है - यह 'आनंदमठ' से है। कथन 2 गलत है - यह 1896 में पहली बार गाया गया।)

2. Mains Question:

"साहित्य ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक उत्प्रेरक का कार्य किया।" बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के 'वंदे मातरम' के विशेष संदर्भ में, 20वीं शताब्दी की शुरुआत में राष्ट्रवाद को आकार देने में इसकी भूमिका का विश्लेषण करें। (10 अंक, 150 शब्द)

Conclusion

'वंदे मातरम' की 150 साल की यात्रा भारत की अपनी खोज की यात्रा है। तमाम राजनीतिक बहसों से परे, यह गीत आज भी कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारतीयों को जोड़ने वाला एक शक्तिशाली सूत्र है। इसका इतिहास हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता हमें उपहार में नहीं मिली, बल्कि इसके लिए पीढ़ियों ने इस गीत को गाते हुए अपना बलिदान दिया है।

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VisionIAS संपादकीय टीम द्वारा

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