UPSC मुख्य परीक्षा का उद्देश्य अभ्यर्थियों की राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, शासन और सामाजिक न्याय की समझ की गहराई तथा इन क्षेत्रों में उनकी सामान्य जागरूकता की समग्र समझ का आकलन करना है। परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्न अभ्यर्थी की GS-2 पाठ्यक्रम से संबंधित प्रासंगिक मुद्दों की बुनियादी समझ और विश्लेषण करने की क्षमता का परीक्षण करेंगे। अभ्यर्थियों को प्रासंगिक, अर्थपूर्ण और संक्षिप्त उत्तर लिखने चाहिए। अभ्यर्थियों को GS-2 के लिए व्यापक रूप से तैयारी करनी चाहिए, क्योंकि यह प्रारंभिक और मुख्य दोनों परीक्षाओं के लिए आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, GS-2 निबंध पेपर के साथ-साथ GS-4 के लिए भी महत्वपूर्ण है। GS-2 की गहन तैयारी अभ्यर्थियों को उनके साक्षात्कार में भी मदद करेगी। अतः यह UPSC की तैयारी का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है।
UPSC मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन 2 का पाठ्यक्रम
मुख्य परीक्षा के लिए GS2 का पाठ्यक्रम निम्नलिखित खंडों में विभाजित है:
- शासन प्रणाली
- शासन व्यवस्था
- सामाजिक न्याय
- अंतर्राष्ट्रीय मामले
इन खंडों को पुनः निम्नलिखित तरीकों से विभाजित किया जा सकता है:
शासन प्रणाली:
A. भारतीय संविधान
- ऐतिहासिक आधार
- विकास
- विशेषताएं
- संशोधन
- महत्वपूर्ण प्रावधान
- बुनियादी संरचना
- इस उप-खंड में, उद्देशिका में निहित प्रमुख शब्दावलियों जैसे ‘समता’, ‘बंधुता’ आदि को समझना महत्वपूर्ण है।
- महत्वपूर्ण प्रावधानों जैसे मूल अधिकार, राज्य के नीति के निदेशक तत्व (DPSPs) पर विशेष बल दिए जाने की आवश्यकता है।
- बुनियादी संरचना के सिद्धांत के विकास, महत्वपूर्ण संवैधानिक संशोधनों, हालिया संशोधनों आदि का गहन अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है।
B. संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व
- यह उप-खंड संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्वों से संबंधित है जिन्हें संविधान द्वारा निर्धारित किया गया है।
C. संघीय ढांचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियां
- इनके अंतर्गत केंद्रीकरण की प्रवृत्तियां, अंतर्राज्यीय विवाद आदि शामिल हैं।
D. स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियां
- विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्वशासन GS-2 मुख्य परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण विषय हैं। अभ्यर्थियों को विकेंद्रीकरण के महत्व, स्थानीय सरकारों के समक्ष आने वाली समस्याओं के साथ-साथ कार्यात्मक और वित्तीय बाधाओं, उनके संदर्भ में किए जाने वाले आवश्यक उपायों आदि से खुद को अवगत करना चाहिए।
E. विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण
- इसके अंतर्गत सरकार के तीनों घटकों के बीच शक्तियों के पृथक्करण, नियंत्रण और संतुलन आदि का महत्व शामिल है।
F. विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान
- इसके अंतर्गत वैकल्पिक विवाद तंत्र जैसे लोक अदालत, मध्यस्थता, पंचाट, सुलह आदि शामिल हैं।
G. भारतीय संवैधानिक योजना की अन्य देशों के साथ तुलना ।
- इस उप-खंड में भारत और अन्य देशों जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस आदि के बीच न्यायिक प्रणालियों, राजनीतिक प्रणालियों, पंथनिरपेक्षता की अवधारणा आदि की तुलना करना महत्वपूर्ण है।
H. संसद और राज्य विधायिका
- संरचना
- कार्य
- कार्य-संचालन
- शक्तियां एवं विशेषाधिकार
- इनसे उत्पन्न होने वाले विषय
- यह एक महत्वपूर्ण उप-खंड है क्योंकि इसके अंतर्गत विभिन्न विषयों पर प्रश्न पूछे जाते हैं, जैसे संसद/सांसदों की भूमिका, संसदीय समितियां, लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका आदि।
I. कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य
- सरकार के मंत्रालय एवं विभाग
- प्रभावक समूह और औपचारिक / अनौपचारिक संघ तथा शासन प्रणाली में उनकी भूमिका
- इसके अंतर्गत नए मंत्रालयों/विभागों के गठन की आवश्यकता, मौजूदा मंत्रालयों/विभागों का विलय आदि शामिल हैं।
- न्यायपालिका के उप-विषय के अंतर्गत उच्चतर न्यायपालिका और निम्नतर न्यायिक प्रणाली की भूमिका, न्यायपालिका द्वारा सामना की जाने वाली समस्याएं, न्याय का अधिकरणीकरण आदि को शामिल किया जाता है।
- इसके एक अन्य पहलू के अंतर्गत महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करने, नीतियां के निर्माण आदि में प्रभावक समूहों की भूमिका शामिल की जाती है।
J. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएं
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत किसी निर्वाचित प्रतिनिधि की निरर्हता, निरर्ह व्यक्तियों के समक्ष उपलब्ध उपचार आदि।
K. विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियां, कार्य और उत्तरदायित्व
- इस उप-खंड के अंतर्गत विभिन्न निकाय जैसे भारत निर्वाचन आयोग, वित्त आयोग आदि शामिल हैं।
L. सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्ध-न्यायिक निकाय
- इस उप खंड के अंतर्गत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, लोकपाल एवं लोकायुक्त संस्थाएं आदि शामिल हैं।
शासन व्यवस्था:
A. सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय
- इसके अंतर्गत संवृद्धि और विकास हेतु योजनाएं और नीतिगत उपाय, उनके कार्यान्वयन में आने वाली समस्याएं, उन समस्याओं के समाधान के उपाय आदि शामिल हैं।
B. विकास प्रक्रिया तथा विकास उद्योग
- गैर-सरकारी संगठनों (NGOs), स्वयं सहायता समूहों (SHGs), विभिन्न समूहों और संघों, दानकर्ताओं, लोकोपकारी संस्थाओं, संस्थागत एवं अन्य पक्षों की भूमिका ।
- इस उप-खंड के अंतर्गत विकासात्मक गतिविधियों में स्वयं सहायता समूहों (SHGs) और गैर सरकारी संगठनों (NGOs) की भूमिका, उन्हें बढ़ावा देने के लिए राज्य द्वारा किए गए उपाय, उनके समक्ष आने वाली बाधाएं आदि शामिल हैं।
C. शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्वपूर्ण पक्ष
D. ई-गवर्नेस-अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएं, सीमाएं और संभावनाएं
- विभिन्न क्षेत्रों में ई-गवर्नेंस को अपनाने हेतु किए गए उपाय, शासन की गुणवत्ता में सुधार लाने में ई-गवर्नेंस की संभावना, इस संबंध में सफल मॉडल, भारत में ई-गवर्नेंस मॉडल की सीमाएं आदि।
E. नागरिक चार्टर
- नागरिक चार्टर का अर्थ, इसका महत्व एवं सीमाएं, निवारण उपाय आदि।
F. पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय
- इस उप-खंड के अंतर्गत शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही का महत्व, इन्हें सुनिश्चित करने हेतु कार्यान्वित संस्थागत उपाय, जिसमें विधान, इस संदर्भ में उत्पन्न समस्याएं आदि शामिल हैं।
G. लोकतंत्र में सिविल सेवाओं की भूमिका
- यह उप-खंड देश के विकास, नीतियों के निर्माण, नीतियों और योजनाओं के कार्यान्वयन, कल्याणकारी सेवाओं आदि में सिविल सेवाओं द्वारा निभाई गई भूमिका से संबंधित है।
सामाजिक न्याय:
A. केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं और इन योजनाओं का कार्य- निष्पादन, इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिए गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय ।
- इस उप-खंड के अंतर्गत अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, महिलाओं आदि के कल्याण हेतु स्थापित संस्थागत निकायों सहित विधान, योजनाएं/संरक्षण के उपाय शामिल हैं।
B. स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय ।
- यह एक व्यापक विषय है जिसके अंतर्गत स्वास्थ्य, शिक्षा और मानव संसाधन से संबंधित प्रावधानों, सुविधाओं, अधिकारीयों और पहलों के विकास एवं प्रबंधन से संबंधित पहलुओं को शामिल किया गया है।
C. गरीबी और भूख से संबंधित विषय ।
- इस महत्वपूर्ण पहलु के अंतर्गत गरीबी के अनुमान और उनकी पर्याप्तता, भारत में भुखमरी और गरीबी से उत्पन्न चुनौतियां, भुखमरी और गरीबी से संबंधित नीतियां तथा उनकी प्रभावकारिता आदि शामिल हैं।
अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध:
A. भारत एवं इसके पड़ोसी-संबंध ।
- इसके अंतर्गत भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध, इस संबंध में हालिया घटनाक्रम, अपने पड़ोसी देशों के संबंध में भारत की विदेश नीति आदि शामिल हैं।
B. द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार ।
- इसके अंतर्गत SAARC, BIMSTEC, SCO आदि समूह शामिल हैं।
C. भारत के हितों, भारतीय परिदृश्य पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियाँ तथा राजनीति का प्रभाव ।
- यह उप-खंड अन्य देशों जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, इजराइल आदि की नीतियों से संबंधित है, जिनका भारत के हितों पर प्रभाव पड़ सकता है।
D. भारतीय प्रवासी समुदाय (डायस्पोरा)
- इसके अंतर्गत भारत के हितों को आगे बढ़ाने में प्रवासी भारतीयों की भूमिका, उनकी सहभागिता के लिए सरकार द्वारा प्रारंभ की गई पहलें आदि शामिल हैं।
E. महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएं और मंच –
- उनकी संरचना
- अधिदेश
- इस उप-खंड के अंतर्गत विश्व व्यापार संगठन (WTO), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), संयुक्त राष्ट्र (UN) और इससे संबद्ध संस्थाओं आदि की संरचना एवं अधिदेश शामिल हैं।
UPSC मुख्य परीक्षा में GS-2 में गत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
गत वर्षों के प्रश्नों को पढ़ना महत्वपूर्ण है क्योंकि वे अभ्यर्थियों का मार्गदर्शन करते हैं तथा महत्वपूर्ण विषयों, मुद्दों, पूछे जाने वाले प्रश्नों के प्रकारों की जानकारी प्रदान करते हैं। गत वर्षों के प्रश्न GS-2 के लिए अभ्यर्थियों के करंट अफेयर्स की तैयारी में भी मार्गदर्शक के रूप में भी कार्य करते हैं। अभ्यर्थी यह समझ सकते हैं कि खबरों में आने वाले विषय परीक्षा में किस प्रकार से पूछे जाते हैं और उसी के अनुरूप अपने नोट्स तैयार कर सकते हैं। गत 10 वर्षों के UPSC के प्रश्न पत्रों का गहन विश्लेषण कुछ दोहराए जाने वाले विषयों को उजागर करता है, जिनमें निम्न शामिल हैं:
संघवाद:
- अनेक राज्य सरकारें बेहतर प्रशासन के लिए भौगोलिक प्रशासनिक इकाईयों जैसे जनपद व तालुकों को विभाजित कर देती हैं। उक्त के आलोक में, क्या यह भी औचित्यपूर्ण कहा जा सकता है कि कि अधिक संख्या में छोटे राज्य, राज्य स्तर पर प्रभावी शासन देंगे? विवेचना कीजिए। (2013)
- यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद (फैडरलिज्म) सशक्त केन्द्र के पक्ष में झुका हुआ है। यह एक ऐसा लक्षण है जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये। (2014)
- हाल के वर्षों में सहकारी परिसंघवाद की संकल्पना पर अधिकाधिक बल दिया जाता रहा है। विद्यमान संरचना में असुविधाओं और सहकारी परिसंघवाद किस सीमा तक इन असुविधाओं का हल निकाल लेगा, इस पर प्रकाश डालिए। (2015)
- आपके विचार में सहयोग, स्पर्धा एवं संघर्ष ने किस प्रकार से भारत में महासंघ को किस सीमा तक आकार दिया है ? अपने उत्तर को प्रमाणित करने के लिए कुछ हालिया उदाहरण उद्धृत कीजिए । (2020)
- "भारत में राष्ट्रीय राजनैतिक दल केन्द्रीयकरण के पक्ष में हैं, जबकि क्षेत्रीय दल राज्य-स्वायत्तता के पक्ष में ।” टिप्पणी कीजिए। (2022)
मूल अधिकार:
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A की इससे कथित संविधान के अनुच्छेद 19 के उल्लंघन के संदर्भ में विवेचना कीजिए । (2013)
- आप 'वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य' संकल्पना से क्या समझते हैं ? क्या इसकी परिधि में घृणा वाक् भी आता है ? भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से तनिक भिन्न स्तर पर क्यों हैं? चर्चा कीजिये। (2014)
- क्या स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार में दीवाली के दौरान पटाखे जलाने के विधिक विनियम भी शामिल हैं? इस पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के, और इस संबंध में शीर्ष न्यायालय के निर्णय/निर्णयों के, प्रकाश में चर्चा कीजिए। (2015)
- "भारत के सम्पूर्ण क्षेत्र में निवास करने और विचरण करने का अधिकार स्वतंत्र रूप से सभी भारतीय नागरिकों को उपलब्ध है, किन्तु ये अधिकार असीम नहीं हैं।" टिप्पणी कीजिए । (2022)
शक्तियों का पृथक्करण:
- क्या आपके विचार में भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करता है, बल्कि यह 'नियंत्रण एवं संतुलन' के सिद्धान्त पर आधारित है? व्याख्या कीजिए । (2019)
- न्यायिक विधायन, भारतीय संविधान में परिकल्पित शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का प्रतिपक्षी है। इस संदर्भ में कार्यपालक अधिकरणों को दिशा-निर्देश देने की प्रार्थना करने सम्बन्धी, बड़ी संख्या में दायर होने वाली, लोक हित याचिकाओं का न्याय औचित्य सिद्ध कीजिये । (2020)
संसद/राज्य विधायिका:
- कुछ वर्षों से सांसदों की व्यक्तिगत भूमिका में कमी आई है जिसके फलस्वरूप नीतिगत मामलों में स्वस्थ रचनात्मक बहस प्रायः देखने को नहीं मिलती। दल परिवर्तन विरोधी कानून, जो भिन्न उद्देश्य से बनाया गया था, को कहाँ तक इसके लिए उत्तरदायी माना जा सकता है ? (2013)
- संसद और उसके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (इम्यूनिटीज़), जैसे कि वे संविधान की धारा 105 में परिकल्पित हैं, अनेकों असंहिताबद्ध (अन-कोडिफाइड) और अ-परिगणित विशेषाधिकारों के जारी रहने का स्थान खाली छोड़ देती हैं। संसदीय विशेषाधिकारों के विधिक संहिताकरण की अनुपस्थिति के कारणों का आकलन कीजिये। इस समस्या का क्या समाधान निकाला जा सकता है ? (2014)
- आप यह क्यों सोचते हैं कि समितियाँ संसदीय कार्यों के लिए उपयोगी मानी जाती हैं? इस संदर्भ में प्राक्कलन समिति की भूमिका की विवेचना कीजिए। (2018)
- राष्ट्रीय विधि निर्माता के रूप में अकेले एक संसद सदस्य की भूमिका अवनति की ओर है, जिसके फलस्वरूप वादविवादों की गुणता और उनके परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ भी चुका है। चर्चा कीजिए । (2019)
- 'एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर'! क्या आपके विचार में लोकसभा अध्यक्ष पद की निष्पक्षता के लिए इस कार्यप्रणाली को स्वीकारना चाहिए ? भारत में संसदीय प्रयोजन की सुदृढ़ कार्यशैली के लिए इसके क्या परिणाम हो सकते हैं ? (2020)
- आपकी दृष्टि में, भारत में कार्यपालिका की जवाबदेही को निश्चित करने में संसद कहाँ तक समर्थ है? (2021)
- राज्य सभा के सभापति के रूप में भारत के उप-राष्ट्रपति की भूमिका की विवेचना कीजिए । (2022)
- विधायी कार्यों के संचालन में व्यवस्था एवं निष्पक्षता बनाए रखने में और सर्वोत्तम लोकतांत्रिक परम्पराओं को सुगम बनाने में राज्य विधायिकाओं के पीठासीन अधिकारियों की भूमिका की विवेचना कीजिए । (2023)
- संसदीय समिति प्रणाली की संरचना को समझाइए । भारतीय संसद के संस्थानीकरण में वित्तीय समितियों ने कहां तक मदद की ? (2023)
महत्वपूर्ण विधान/कानून:
- राष्ट्रपति द्वारा हाल में प्रख्यापित अध्यादेश के द्वारा माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 में क्या प्रमुख परिवर्तन किए गए हैं? यह भारत के विवाद समाधान यांत्रिकत्व को किस सीमा तक सुधारेगा? चर्चा कीजिए। (2015)
- "यदि संसद में पटल पर रखे गए व्हिसलब्लोअर्स अधिनियम, 2011 के संशोधन बिल को पारित कर दिया जाता है, तो हो सकता है कि सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोई बचे ही नहीं।" समालोचनापूर्वक मूल्यांकन कीजिए। (2015)
- विदेशी अभिदाय (विनियमन) अधिनियम (एफ. सी. आर. ए.), 1976 के अधीन गैर-सरकारी संगठनों के विदेशी वित्तीयन के नियंत्रक नियमों में हाल के परिवर्तनों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (2015)
- संविधान (एक सौ एक संशोधन) अधिनियम, 2016 के प्रमुख अभिलक्षणों को समझाइए। क्या आप समझते हैं कि यह "करों के सोपानिक प्रभाव को समाप्त करने में और माल तथा सेवाओं के लिए साझा राष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराने में" काफी प्रभावकारी है? (2017)
- राष्ट्र की एकता और अखण्डता बनाये रखने के लिये भारतीय संविधान केन्द्रीयकरण करने की प्रवृत्ति प्रदर्शित करता है। महामारी अधिनियम, 1897; आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 तथा हाल में पारित किये गये कृषि क्षेत्र के अधिनियमों के परिप्रेक्ष्य में सुस्पष्ट कीजिये । (2020)
- "सूचना का अधिकार अधिनियम में किये गये हालिया संशोधन सूचना आयोग की स्वायत्तता और स्वतंत्रता पर गम्भीर प्रभाव डालेंगे"। विवेचना कीजिए। (2020)
- दिव्यांगता के संदर्भ में सरकारी पदाधिकारियों और नागरिकों की गहन संवेदनशीलता के बिना दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 केवल विधिक दस्तावेज़ बनकर रह जाता है। टिप्पणी कीजिए । (2022)
- स्कूली शिक्षा के महत्त्व के बारे में जागरूकता उत्पन्न किए बिना, बच्चों की शिक्षा में प्रेरणा-आधारित पद्धति के संवर्धन में निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 अपर्याप्त है । विश्लेषण कीजिए। (2022)
- 101 वें संविधान संशोधन अधिनियम का महत्व समझाइए । यह किस हद तक संघवाद के समावेशी भावना को दर्शाता है ? (2023)
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
- अध्यादेशों का आश्रय लेने ने हमेशा ही शक्तियों के पृथक्करण सिद्धांत की भावना के उल्लंघन पर चिंता जागृत की है। अध्यादेशों को लागू करने की शक्ति के तर्काधार को नोट करते हुए विश्लेषण कीजिए कि क्या इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के विनिश्चयों ने इस शक्ति का आश्रय लेने को और सुगम बना दिया है। क्या अध्यादेशों को लागू करने की शक्ति का निरसन कर दिया जाना चाहिए? (2015)
- कोहिलो केस में क्या अभिनिर्धारित किया गया था? इस संदर्भ में, क्या आप कह सकते हैं कि न्यायिक पुनर्विलोकन संविधान के बुनियादी अभिलक्षणों में प्रमुख महत्त्व का है ? (2016)
- भारत में उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (2017)
- क्या उच्चतम न्यायालय का निर्णय (जुलाई 2018) दिल्ली के उप-राज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनैतिक कशमकश को निपटा सकता है? परीक्षण कीजिए। (2018)
- "संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति एक परिसीमित शक्ति है और इसे आत्यंतिक शक्ति के रूप में विस्तृत नहीं किया जा सकता है।" इस कथन के आलोक में व्याख्या कीजिए कि क्या संसद संविधान के अनुच्छेद 368 के अंतर्गत अपनी संशोधन की शक्ति का विशदीकरण करके संविधान के मूल ढांचे को नष्ट कर सकती है ? (2019)
स्थानीय स्वशासन:
- सुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन व्यवस्था की अनुपस्थिति में 'पंचायतें' और 'समितियाँ' मुख्यतः राजनीतिक संस्थाएँ बनी रही है न कि शासन के प्रभावी उपकरण। समालोचनापूर्वक चर्चा कीजिए। (2015)
- खाप पंचायतें संविधानेतर प्राधिकरणों के तौर पर प्रकार्य करने, अक्सर मानवाधिकार उल्लंघनों की कोटि में आने वाले निर्णयों को देने के कारण ख़बरों में बनी रही हैं। इस संबंध में स्थिति को ठीक करने के लिए विधानमंडल, कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा की गई कार्रवाइयों पर समालोचनात्मक चर्चा कीजिए। (2015)
- "भारत में स्थानीय स्वशासन पद्धति, शासन का प्रभावी साधन साबित नहीं हुई है।" इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए तथा स्थिति में सुधार के लिए अपने विचार प्रस्तुत कीजिए। (2017)
- भारत में स्थानीय शासन के एक भाग के रूप में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिए। विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिए पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा और किन स्रोतों को खोज सकती हैं? (2018)
- "स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का भारत के राजनीतिक प्रक्रम के पितृतंत्रात्मक अभिलक्षण पर एक सीमित प्रभाव पड़ा है।" टिप्पणी कीजिए । (2019)
- भारत में स्थानीय निकायों की सुदृढ़ता एवं संपोषिता 'प्रकार्य, कार्यकर्ता व कोष' की अपनी रचनात्मक प्रावस्था से 'प्रकार्यात्मकता' की समकालिक अवस्था की ओर स्थानान्तरित हुई है। हाल के समय में प्रकार्यात्मकता की दृष्टि से स्थानीय निकायों द्वारा सामना की जा रही अहम् चुनौतियों को आलोकित कीजिए। (2020)
- आपकी राय में, भारत में शक्ति के विकेन्द्रीकरण ने जमीनी स्तर पर शासन-परिदृश्य को किस सीमा तक परिवर्तित किया है? (2022)
- "भारत के राज्य शहरी स्थानीय निकायों को कार्यात्मक एवं वित्तीय दोनों ही रूप से सशक्त बनाने के प्रति अनिच्छुक प्रतीत होते हैं।" टिप्पणी कीजिए । (2023)
ई-गवर्नेस:
- भ्रष्टाचार को नगण्य करने, अपव्यय को समाप्त करने और सुधारों को सुगम बनाने हेतु कल्याणकारी योजनाओं में इलेक्ट्रॉनीय नकद हस्तांतरण प्रणाली एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है। टिप्पणी कीजिए । (2013)
- ई-शासन केवल नवीन प्रौद्योगिकी की शक्ति के उपयोग के बारे में नहीं है, अपितु इससे अधिक सूचना के 'उपयोग मूल्य' के क्रांतिक महत्त्व के बारे में है। स्पष्ट कीजिए। (2018)
- "चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेन्स को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने में पहल की है"। विवेचन कीजिए। (2020)
- अभिशासन के एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में ई-शासन ने सरकारों में प्रभावशीलता, पारदर्शिता और जवाबदेयता का आगाज कर दिया है। कौन-सी अपर्याप्तताएं इन विशेषताओं की अभिवृद्धि में बाधा बनती हैं? (2023)
गैर सरकारी संगठनों (NGOs), स्वयं सहायता समूहों (SHGs), विभिन्न समूहों और संघों की भूमिका:
- स्वयं सहायता समूहों की वैधता एवं जवाबदेही और उनके संरक्षक, सूक्ष्म-वित्त पोषक इकाइयों का, इस अवधारणा की सतत सफलता के लिए योजनाबद्ध आकलन व संवीक्षण आवश्यक है। विवेचना कीजिए । (2013)
- ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यक्रमों में भागीदारी की प्रोन्नति करने में स्वावलंबन समूहों (एस.एच.जी.) के प्रवेश को सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। परीक्षण कीजिये । (2014)
- आत्मनिर्भर समूह (एस. एच. जी.) बैंक अनुबंधन कार्यक्रम (एस. बी. एल. पी.), जो कि भारत का स्वयं का नवाचार है, निर्धनता न्यूनीकरण और महिला सशक्तीकरण कार्यक्रमों में एक सर्वाधिक प्रभावी कार्यक्रम साबित हुआ है। सविस्तार स्पष्ट कीजिए। (2015)
- पर्यावरण की सुरक्षा से संबंधित विकास कार्यों के लिए भारत में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका को किस प्रकार मज़बूत बनाया जा सकता है? मुख्य बाध्यताओं पर प्रकाश डालते हुए चर्चा कीजिए। (2015)
- "भारतीय शासकीय तंत्र में, गैर-राजकीय कर्ताओं की भूमिका सीमित ही रही है।" इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए । (2016)
- "वर्तमान समय में स्वयं सहायता समूहों का उद्भव राज्य के विकासात्मक गतिविधियों से धीरे परंतु निरंतर पीछे हटने का संकेत है।" विकासात्मक गतिविधियों में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका का एवं भारत सरकार द्वारा स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित करने के लिए किए गए उपायों का परीक्षण कीजिए। (2017)
- "सूक्ष्म-वित्त एक गरीबी रोधी टीका है जो भारत में ग्रामीण दरिद्र की परिसंपत्ति निर्माण और आयसुरक्षा के लिए लक्षित है"। स्वयं सहायता समूहों की भूमिका का मूल्यांकन ग्रामीण भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ साथ उपरोक्त दोहरे उद्देश्यों के लिए कीजिए । (2020)
- क्या नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठन, आम नागरिक को लाभ प्रदान करने के लिए लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं? इस वैकल्पिक प्रतिमान की चुनौतियों की विवेचना कीजिए। (2021)
- भारत में राज्य विधायकों में महिलाओं की प्रभावी एवं सार्थक भागीदारी और प्रतिनिधित्व के लिए नागरिक समाज महिलाओं के योगदान पर विचार कीजिए। (2023)
स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधन से संबंधित मुद्दे:
- उन सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों को पहचानिए जो स्वास्थ्य से संबंधित हैं। इन्हें पूरा करने के लिए सरकार द्वारा की गई कार्रवाई की सफलता की विवेचना कीजिए । (2013)
- क्या आई.आई.टी./आई.आई.एम. जैसे प्रमुख संस्थानों को अपनी प्रमुख स्थिति को बनाए रखने की, पाठ्यक्रमों को डिज़ाइन करने में अधिक शैक्षिक स्वतंत्रता की और साथ ही छात्रों के चयन की विधाओं/कसौटियों के बारे में स्वयं निर्णय लेने की अनुमति दी जानी चाहिए ? बढ़ती हुई चुनौतियों के प्रकाश में चर्चा कीजिये । (2014)
- भारत में उच्च शिक्षा की गुणता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगी बनाने के लिए उसमें भारी सुधारों की आवश्यकता है। क्या आपके विचार में विदेशी शैक्षिक संस्थाओं का प्रवेश देश में उच्च और तकनीकी शिक्षा की गुणता की प्रोन्नति में सहायक होगा? चर्चा कीजिए। (2015)
- सार्विक स्वास्थ्य संरक्षण प्रदान करने में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की अपनी परिसीमाएँ हैं। क्या आपके विचार में खाई को पाटने में निजी क्षेत्रक सहायक हो सकता है? आप अन्य कौन-से व्यवहार्य विकल्प सुझाएँगे? (2015)
- "भारत में जनांकिकीय लाभांश तब तक सैद्धांतिक ही बना रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक, कुशल और सृजनशील नहीं हो जाती ।" सरकार ने हमारी जनसंख्या को अधिक उत्पादनशील और रोज़गार-योग्य बनने की क्षमता में वृद्धि के लिए कौन-से उपाय किए हैं ? (2016)
- भारत में 'सभी के लिए स्वास्थ्य' को प्राप्त करने के लिए समुचित स्थानीय सामुदायिक स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल का मध्यक्षेप एक पूर्वपिक्षा है। व्याख्या कीजिए। (2018)
- सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के क्रम में, विशेषकर जराचिकित्सा एवं मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में सुदृढ़ और पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल संबंधी नीतियों की आवश्यकता है। विवेचन कीजिए । (2020)
- "व्यावसायिक शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण को सार्थक बनाने के लिए 'सीखते हुए कमाना (अर्न व्हाइल यू लर्न)' की योजना को सशक्त करने की आवश्यकता है।" टिप्पणी कीजिए। (2021)
- क्या ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से, डिजिटल निरक्षरता ने सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आइ. सी. टी.) की अल्प-उपलब्धता के साथ मिलकर सामाजिक-आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न किया है? औचित्य सहित परीक्षण कीजिए। (2021)
- विभिन्न क्षेत्रों में मानव संसाधनों की आपूर्ति में वृद्धि करने में कौशल विकास कार्यक्रमों ने सफलता अर्जित की है। इस कथन के सन्दर्भ में शिक्षा, कौशल और रोजगार के मध्य संयोजन का विश्लेषण कीजिए । (2023)
निर्धनता और भुखमरी से संबंधित मुद्दे:
- यद्यपि भारत में निर्धनता के अनेक विभिन्न प्राक्कलन किए गए हैं, तथापि सभी समय गुजरने के साथ निर्धनता स्तरों में कमी आने का संकेत देते हैं। क्या आप सहमत हैं? शहरी और ग्रामीण निर्धनता संकेतकों का उल्लेख के साथ समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (2015)
- अब तक भी भूख और गरीबी भारत में सुशासन के समक्ष सबसे बड़ी चुनौतियां हैं। मूल्यांकन कीजिए कि इन भारी समस्याओं से निपटने में क्रमिक सरकारों ने किस सीमा तक प्रगति की है। सुधार के लिए उपाय सुझाइए। (2017)
- "भारत में निर्धनता न्यूनीकरण कार्यक्रम तब तक केवल दर्शनीय वस्तु बने रहेंगे जब तक कि उन्हें राजनीतिक इच्छाशक्ति का सहारा नहीं मिलता है।" भारत में प्रमुख निर्धनता न्यूनीकरण कार्यक्रमों के निष्पादन के संदर्भ में चर्चा कीजिए। (2017)
- आप इस मत से कहां तक सहमत हैं कि भूख के मुख्य कारण के रूप में खाद्य की उपलब्धता में कमी पर फोक्रस, भारत में अप्रभावी मानव विकास नीतियों से ध्यान हटा देता है? (2018)
- "केवल आय पर आधारित गरीबी के निर्धारण में गरीबी का आपतन और तीव्रता अधिक महत्वपूर्ण है"। इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र बहुआयामी गरीबी सूचकांक की नवीनतम रिपोर्ट का विश्लेषण कीजिए। (2020)
भारत की विदेश नीति :
- गुजरात सिद्धान्त से क्या अभिप्राय है? क्या आज इसकी कोई प्रासंगिकता है? विवेचना कीजिए।
- परियोजना ‘मौसम’ को भारत सरकार की अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने की एक अद्वितीय विदेश नीति पहल माना जाता है। क्या इस परियोजना का एक रणनीतिक आयाम है। चर्चा कीजिए। (2015)
- शीतयुद्धोत्तर अंतर-राष्ट्रीय परिदृश्य के सन्दर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्यांकन कीजिए। (2016)
- ‘स्वच्छ ऊर्जा आज की जरूरत है।’ भू-राजनीति के संदर्भ में, विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों में जलवायु परिवर्तन की दिशा में भारत की बदलती नीति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (2022)
भारत एवं पड़ोसी देश:
- बंगलादेश के ढाका में शाहबाग स्क्वायर में हुए विरोध प्रदर्शनों ने समाज में राष्ट्रवादी व इस्लामी शक्तियों के बीच मौलिक मतभेद उजागर किया है। भारत के लिए इसका क्या महत्त्व है? (2013)
- ‘मोतियों के हार’ (द स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स) से आप क्या समझते हैं? यह भारत को किस प्रकार प्रभावित करता है? इसका सामना करने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदमों की संक्षिप्त रूपरेखा दीजिए। (2013)
- मालदीव में पिछले दो वर्षों में हुई राजनीतिक घटनाओं की विवेचना कीजिए। यह बताइए कि क्या ये भारत के लिए चिंता का विषय है। (2013)
- भारत-श्रीलंका संबंधों के संदर्भ में, विवेचना कीजिए कि किस प्रकार आंतरिक (देशीय) कारक विदेश नीति को प्रभावित करते है। (2013)
- वर्ष 2014 में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायक बल (ISAF) की अफगानिस्तान से प्रस्तावित वापसी क्षेत्र के देशों के लिए बड़े खतरों (सुरक्षा उलझनों) भरा है। इस तथ्य के आलोक में परीक्षण कीजिए कि भारत के सामने भरपूर चुनौतियाँ हैं तथा उस अपने सामरिक महत्त्व के हितों की रक्षा करने की आवश्यकता है। (2013)
- आतंकवादी गतिविधियों और परस्पर अविश्वास ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को धूमिल बना दिया है। खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदानों जैसी मृदु शक्ति किस सीमा तक दोनों देशों के बीच सद्भाव उत्पन्न करने में सहायक हो सकती है? उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए। (2015)
- “चीन अपने आर्थिक संबंधों एवं सकारात्मक व्यापार अधिशेष को, एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिए, उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।” इस कथन के प्रकाश में, उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिए। (2017)
- ‘भारत श्रीलंका का बरसों पुराना मित्र है।’ पूर्ववर्ती कथन के आलोक में श्रीलंका के वर्तमान संकट में भारत की भूमिका की विवेचना कीजिए। (2022)
क्षेत्रीय समूह:
- “भारत के बढ़ते हुए सीमापारीय आतंकी हमले और अनेक सदस्य-राज्यों के आंतरिक मामलों में पाकिस्तान द्वारा बढ़ता हुआ हस्तक्षेप सार्क (दक्षिणी एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के भविष्य के लिए सहायक नहीं है।” उपयुक्त उदहारण के साथ स्पष्ट कीजिए। (2016)
- मध्य एशिया, जो भारत के लिए एक हित क्षेत्र है, में अनेक बाह्य शक्तियों ने अपने-आप को संस्थापित कर लिया है। इस संदर्भ में, भारत द्वारा अश्गाबात करार, 2018 में शमिल होने के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए। (2018)
- ‘चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड)’ वर्तमान समय में स्वयं को सैनिक गठबंधन से एक व्यापारिक गुट में रूपांतरित कर रहा है- विवेचना कीजिए। (2020)
- एस ० सी ० ओ ० के लक्ष्यों और उद्देश्यों का विश्लेषणात्मक परीक्षण कीजिए। भारत के लिए इसका क्या महत्व है? (2021)
- भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की महत्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना नई त्रि – राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य है। क्या यह इस क्षेत्र में मौजूदा साझेदारी का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में, AUKUS की शक्ति और प्रभाव की विवेचना कीजिए। (2021)
- आपके विचार में क्या बिमस्टेक (BIMSTEC) सार्क (SAARC) की तरह एक समानांतर संगठन है? इन दोनों के बीच क्या समानताएं और असमानताएं हैं? इस नए संगठन के बनाए जाने से भारतीय विदेश नीति के उद्देश्य कैसे प्राप्त हुए हैं? (2022)
- 'संघर्ष का विषाणु एस.सी.ओ. के कामकाज को प्रभावित कर रहा है' उपर्युक्त कथन के आलोक में समस्याओं को कम करने में भारत की भूमिका बताइये। (2023)
अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं:
- विश्व बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, संयुक्त रूप से ब्रेटन वुड्स नाम से जानी जाने वाली संस्थाएं, विश्व की आर्थिक व वित्तीय व्यवस्था की संरचना का संभरण करने वाले दो अन्त सरकारी स्तम्भ हैं। पृष्ठीय रूप में, विश्व बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष दोनों की अनेक समान विशिष्टताएँ है, तथापि उनकी भूमिका, कार्य तथा अधिदेश स्पष्ट रूप से भिन्न है। व्याख्या कीजिए। (2013)
- भारत ने हाल ही में ‘‘नव विकास बैंक’’ और साथ ही ‘‘एशियाई आधारिक संरचना निवेश बैंक’’ के संस्थापक सदस्य बनने के लिए हस्ताक्षर किये हैं। इन दो बैंकों की भूमिकाएं एक दूसरे से किस प्रकार भिन्न होगी? भारत के लिये इन दो बैंकों के रणनीतिक महत्व पर चर्चा कीजिए। (2014)
- विश्व व्यापार संगठन एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जहां लिए गए निर्णय देशों के गहराई से प्रभावित करते हैं। डब्ल्यू.टी.ओ. का क्या अधिदेश है और उसके निर्णय किस प्रकार बंधनकारी है? खाद्य सुरक्षा पर विचार-विमर्श के पिछले चक्र पर भारत के दृढ़-मत का समालोचनापूर्वक विश्लेषण कीजिए। (2014)
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सीट की खोज में भारत के समक्ष आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिए। (2015)
- विश्व व्यापार संगठन (डब्लू.टी.ओ.) के अधिक व्यापक लक्ष्य और उद्देश्य वैश्वीकरण के युग में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रबंधन और प्रोन्नति करना है। परन्तु (संधि) वार्ताओं की दोहा परिधि मृत्योन्मुखी प्रतीत होती है, जिसका कारण विकसित और विकासशील देशो के बीच मतभेद है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में, इस पर चर्चा कीजिए। (2016)
- यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) के मैक्ब्राइड आयोग के लक्ष्य और उद्देश्य क्या-क्या हैं? इनमे भारत की क्या स्थिति है? (2016)
- संयुक्त राष्ट्र आर्थिक व सामाजिक परिषद (इकोसॉक) के प्रमुख प्रकार्य क्या है? इसके साथ संलग्न विभिन्न प्रकार्यात्मक आयोगों को स्पष्ट कीजिए। (2017)
- यदि ‘व्यापार युद्ध’ के वर्तमान परिदृश्य में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू ० टी ० ओ ०) को जिंदा बने रहना है, तो उसके सुधार के कौन-कौन से प्रमुख क्षेत्र है, विशेष रूप से भारत के हित को ध्यान में रखते हुए? (2018)
- आवश्यकता से कम नगदी, अत्यधिक राजनीति ने यूनेस्को को जीवन रक्षण की स्थिति में पहुंचा दिया है। अमेरिका द्वारा सदस्यता परित्याग करने और सांस्कृतिक संस्था पर इजराइल विरोधी पूर्वाग्रह होेने का दोषारोपण करने के प्रकाश में इस कथन की विवेचना कीजिए। (2019)
- कोविड-19 महामारी के दौरान वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू. एच. ओ. ) की भूमिका का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (2020)
- 'समुद्र ब्रह्मांड का एक महत्वपूर्ण घटक है' उपर्युक्त कथन के आलोक में पर्यावरण रक्षण और समुद्री संरक्षा एवं सुरक्षा को बढ़ाने में आई.एम.ओ. (अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन) की भूमिका पर चर्चा करें। (2023)
भारतीय प्रवासियों की भूमिका:
- दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था एवं समाज में भारतीय प्रवासियों को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। इस संदर्भ में, दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय प्रवासियों की भूमिका का मूल्यनिरूपण कीजिए। (2017)
- ‘अमेरिका एवं यूरोपीय देशों की राजनीति और अर्थव्यवस्था में भारतीय प्रवासियों को एक निर्णायक भूमिका निभानी है’। उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिए। (2020)
- भारतीय प्रवासियों ने पश्चिम में नई ऊंचाइयों को छुआ है। भारत के लिये इसके आर्थिक और राजनीतिक लाभों का वर्णन करें। (2023)
UPSC मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन-2 की रणनीति :
सामान्य अध्ययन -2 के लिए रणनीति बनाने के दौरान अभ्यर्थियों को निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए:
- पाठ्यक्रम को विस्तार और सतर्कता से समझना चाहिए। UPSC अभ्यर्थियों को केवल दो संदर्भ सामग्री- पाठ्यक्रम और पिछले वर्ष के प्रश्न उपलब्ध कराती है।
- एक बार जब अभ्यर्थियों पाठ्यक्रम से परिचित हो जाते हैं, तो उन्हें पूछे जाने वाले प्रश्नों के प्रकार, रुझान, दोहराए जाने वाले विषय-वस्तु आदि को समझने के लिए पिछले वर्ष के प्रश्न पत्रों का परीक्षण करना चाहिए।
- इसके बाद अभ्यर्थियों को तैयारी की प्रक्रिया में आगे बढ़ना चाहिए। इस प्रक्रिया में एम. लक्ष्मीकांत की भारत की राजव्यवस्था, डी. डी. बसु की भारत का संविधान एक परिचय आदि जैसी पुस्तकों का उपयोग करना चाहिए। इस दिशा में अभ्यर्थी नोट्स जैसे Vision IAS के राजव्यवस्था पर नोट्स पर भी विश्वास कर सकते हैं।
- प्रारंभिक ध्यान राजव्यस्था की मूलभूत अवधारणाओं को समझने पर होना चाहिए, जैसे कि शक्तियों का पृथक्करण, मूल संरचना का सिद्धांत, शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही, भारत की विदेश नीति, भारत के अपने पड़ोसियों देशों के साथ संबंध, लोककल्याणकारी योजनाएं। सामान्य अध्ययन के प्रश्न पत्र -2 के लिए संविधान का अध्ययन और समझ विकसित करना प्रासंगिक होता है (विशेषकर वे विषय-वस्तु जिन पर बारंबार प्रश्न पूछे जाते हैं और जिन्हें समाचारों में प्रकाशित किया जाता है)। अभ्यर्थियों को संबंधित समिति की रिपोर्टों, आयोगों आदि के बारे में भी जानकारी होना चाहिए (उदाहरण के लिए, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट, सरकारिया आयोग, आदि)।
- विभिन्न विषयों की तैयारी के दौरान अभ्यर्थियों को ऐसे नोट्स बनाने चाहिए जो संक्षिप्त और रिविज़न में आसान हों। इसी तरह, अभ्यर्थियों को करंट अफेयर्स पर अध्ययन सामग्री पढ़ना चाहिए तथा परीक्षा के लिए प्रासंगिक नोट्स तैयार करने चाहिए। महत्वपूर्ण योजनाओं/प्रासंगिक उदाहरणों को नोट करना चाहिए, ताकि उत्तरों में इनका उपयोग किया जा सके।
- UPSC की तैयारी के लिए केवल अध्ययन और नोट्स बनाना पर्याप्त नहीं है। UPSC के पैटर्न से परिचित होने के लिए अभ्यर्थियों को उत्तर लेखन का अभ्यास करने की आवश्यकता है।
- उत्तर लिखने का अभ्यास करने के बाद, अभ्यर्थियों को मॉक प्रश्न पत्र लिखना चाहिए। इससे अभ्यर्थियों को एक विशिष्ट समय सीमा के भीतर उत्तर लेखन में सहयोग मिलेगा। अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा की तैयारी के दौरान समय प्रबंधन के कौशल पर महारत अर्जित करने की आवश्यकता होती है।
- अभ्यर्थियों को फिर रिविज़न पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्हें अपने नोट्स के साथ-साथ मॉक टेस्ट के मॉडल उत्तरों को भी देखना चाहिए।
मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन-2 की तैयारी के लिए मार्गदर्शन
UPSC मुख्य परीक्षा में उत्तर लेखन का कौशल अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके लिए अभ्यर्थी को पाठ्यक्रम की सूक्ष्मता से समझ, पिछले वर्षों में पूछे गए प्रश्नों की जानकारी, प्रासंगिक करंट अफेयर्स सामग्री से स्वयं को अद्यतन रखना आदि की आवश्यकता होती है। सामान्य अध्ययन-2 प्रश्न पत्र में उत्तर लेखन को बेहतर बनाने के लिए अभ्यर्थी निम्नलिखित बिंदुओं से सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
- समय प्रबंधन: यह मुख्य परीक्षा में उत्तर लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। अभ्यर्थियों को 3 घंटे में सभी प्रश्नों को हल करने का लक्ष्य रखना चाहिए। बारंबार उत्तर लेखन का अभ्यास समय प्रबंधन की कुंजी है।
- प्रश्नों के अंत में आने वाले शब्दों/मुख्य शब्दों/मार्गदर्शक वाक्यांश: प्रश्नों में मुख्य शब्द जैसे कि परीक्षण, आलोचनात्मक विश्लेषण, चर्चा, सोदाहरण व्याख्या आदि शामिल हैं। अभ्यर्थियों को मुख्य शब्दों का अर्थ पता होना चाहिए और तदनुसार प्रश्न को संबोधित करना चाहिए। उदाहरण के लिए, आलोचनात्मक विश्लेषण करने का अर्थ है किसी दिए गए विषय के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को संबोधित करना।
- एक प्रश्न के सभी भागों को संबोधित करना: UPSC प्रायः एक, दो या तीन भागों में प्रश्न पूछता है। प्रश्न के एक से अधिक भाग होने पर प्रश्न के सभी भागों को संबोधित करने की आवश्यकता होती है। ये भाग सामान्यतः अंतर्संबंधित होते हैं और प्रश्न सभी भागों को संबोधित करने की मांग करता है।
- विभाजन: प्रश्न की मांग के अनुसार एक या दो वाक्यों में भूमिका, उत्तर का मुख्य भाग (उत्तर का सार) और एक या दो वाक्यों में निष्कर्ष होना चाहिए। निष्कर्ष प्रायः प्रगतिशील दृष्टिकोण वाला होना चाहिए या इसमें अपनाने योग्य आवश्यक उपाय शामिल होने चाहिए।
- वाक्य विन्यास : वाक्य छोटे और चुस्त होने चाहिए। मुख्य बिंदु स्पष्टतः समझ आने चाहिए तथा जटिल नहीं होने चाहिए।
- शब्द सीमा: अभ्यर्थियों को शब्द सीमा का पालन करना चाहिए, क्योंकि इससे उन्हें समय बचाने में सहायता मिलती है।
- प्रासंगिक उदाहरणों का उपयोग: उत्तरों को प्रासंगिक उदाहरणों के साथ प्रमाणित किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, संबंधित परियोजनाएं, योजनाएं, पहल, आदि। हाल के उदाहरणों को प्राथमिकता देना प्रतिबिंबित करता है कि अभ्यर्थी को वर्तमान घटनाओं का अच्छी तरह से ज्ञान है।
- संविधान के अनुच्छेदों का उल्लेख: भारतीय संविधान सामान्य अध्ययन -2 मुख्य परीक्षा का एक महत्वपूर्ण पहलू है। जहां भी संभव हो, अभ्यर्थियों को मूल्य संवर्धन के लिए संविधान के अनुच्छेदों का उल्लेख करना चाहिए।
निष्कर्ष
UPSC मुख्य परीक्षा के प्रश्न पत्र 2 का पाठ्यक्रम शासन, राजव्यवस्था, सामाजिक न्याय और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की व्यापक समझ की मांग करता है, जो अभ्यर्थी की विश्लेषणात्मक क्षमताओं और ज्ञान की गहरी समझ को गढ़ने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को प्रतिबिंबित करता है। अभ्यर्थियों को तैयारी के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने के लिए करंट अफेयर्स के ज्ञान के साथ सैद्धांतिक समझ को विकसित करना चाहिए। पिछले वर्षों के प्रश्न पत्रों के रुझानों पर ध्यान देने से परीक्षा की दृष्टि से आवश्यक क्षेत्रों की पहचान करने में सहायता मिलती है, जिससे उत्तर लेखन कौशल में वृद्धि होती है। अंततः, प्रश्न पत्र 2 के लिए परिश्रम न केवल मुख्य परीक्षा के अंकों में महत्वपूर्ण योगदान देता है, बल्कि अभ्यर्थियों के दृष्टिकोण को भी समृद्ध करता है, जो UPSC परीक्षा के क्षेत्र में और उससे आगे भी मूल्यवान सिद्ध होता है।