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National Cooperative Policy 2025 और भारत में सहकारिता आंदोलन (Cooperative Movement in India)

प्रमुख लेख

National Cooperative Policy 2025 और भारत में सहकारिता आंदोलन (Cooperative Movement in India)

National Cooperative Policy 2025 और भारत में सहकारिता आंदोलन (Cooperative Movement in India)
28 Jul 2025
Table of Contents

भूमिका / Introduction

भारत में सहकारी संस्थाएं ग्रामीण आत्मनिर्भरता, सामाजिक-आर्थिक समावेशन (Socio-Economic Inclusion) और समुदाय आधारित विकास (Community-Based Development) की रीढ़ रही हैं। हाल ही में लागू "राष्ट्रीय सहकारी नीति 2025 (National Cooperative Policy 2025)" इसी सहकारिता को पेशेवर (Professional), डिजिटल (Digital), और समावेशी (Inclusive) बनाने के नए प्रयासों की शुरुआत है। यह नीति न केवल ग्रामीण विकास (Rural Development), बल्कि विकसित भारत 2047 (Developed India 2047) के सपने की प्रगति का सशक्त आधार भी बनेगी।

(A) समसामयिक मुद्दा: राष्ट्रीय सहकारी नीति 2025

  • घोषणा (Announcement):
    • 24 जुलाई 2025, गृह एवं सहकारिता मंत्री द्वारा शुभारंभ।
    • विजन: सहकार से समृद्धि

रणनीतिक मिशन स्तंभ

राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 छह मुख्य रणनीतिक स्तंभों पर आधारित है:

1. नींव का सशक्तीकरण (Strengthening the Foundation)

  • कानूनी, पारदर्शिता और संरचनात्मक सुधार
  • हर 10 साल में कानूनी सुधार करना
  • एक 'क्लस्टर और निगरानी प्रणाली' बनाना

2. जीवंतता को प्रोत्साहन (Promoting Vibrancy)

  • आत्मनिर्भर सहकारी व्यापार को बढ़ावा देना
  • वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना

3. भविष्य के लिए तैयार करना (Preparing for the Future)

  • प्रोफेशनल, टेक-सक्षम इकाइयों में रूपांतरण
  • डिजिटल प्रौद्योगिकी का एकीकरण

4. समावेशिता को बढ़ाना (Enhancing Inclusivity)

  • महिलाओं, युवाओं, दलितों, आदिवासियों की भागीदारी
  • वंचित वर्गों का सशक्तिकरण

5. नए क्षेत्रों में विस्तार (Expanding into New Sectors)

  • उभरते क्षेत्रों में सहकारी मॉडल का विस्तार
  • नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा

6. युवा पीढ़ी को तैयार करना (Preparing the Younger Generation)

  • राष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष संस्थान की स्थापना
  • सहकारी शिक्षा और प्रशिक्षण का मानकीकरण

फैक्ट बॉक्स (Fact Box):

उद्देश्य

प्रमुख बिंदु

पेशेवर प्रबंधन

प्रशिक्षण, ऑडिट, प्रदर्शन मूल्यांकन

डिजिटल गवर्नेंस

IT प्लेटफॉर्म, रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण (Digitalization)

समावेशिता (Inclusivity)

महिला/युवा आरक्षण (Reservation), वित्तीय पहुँच (Access)

(B) भारत का सहकारिता आंदोलन (Cooperative Movement in India)

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background)

  • 1904 : सहकारी ऋण समिति अधिनियम (Cooperative Credit Societies Act)
  • 1912 : बहुउद्देश्यीय सहकारी संस्था कानून (Multi-purpose Cooperative Societies Act)
  • 1997 : 97वां संविधान संशोधन (97th Constitutional Amendment)
  • मुख्य क्षेत्र: कृषि-उपज विपणन (Agricultural Marketing), दुग्ध (Dairy – Amul), बैंकिंग (Banking – Urban/Rural Coops), उर्वरक (Fertilizer – IFFCO/KRIBHCO)

संरचना (Structure)

 सहकारी संस्थाओं का संगठनात्मक ढाँचा (Organizational Chart of Cooperative Societies)

  1. स्तरीय श्रेणियाँ

स्तर (Tier)

संस्थाएँ

प्राथमिक स्तर (Village Level)

प्राथमिक कृषि सहकारी ऋण समिति (PACS)

जिला स्तर (District Level)

जिला केंद्रीय सहकारी बैंक (DCCB)

राज्य स्तर (State Level)

राज्य सहकारी बैंक (SCB)

2. क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र (Jurisdictional Classification)

सहकारी समितियाँ कानूनी दृष्टि से दो प्रकार की होती हैं:

श्रेणी

कानूनी आधार

नियंत्रण प्राधिकारी

राज्य सीमित सहकारी समिति

राज्य सहकारी अधिनियम

संबंधित राज्य सरकार

बहु-राज्यीय सहकारी समिति

बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम  2002

केन्द्र (Ministry of Cooperation)

(C) विकास, उपलब्धियाँ और केस स्टडी (Development, Achievements & Case Studies)

क्षेत्र (Sector)

प्रमुख संस्था (Major Institution)

योगदान (Contribution)

डेयरी

अमूल (Amul)

भारत को विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक बनाना

कृषि विपणन

NAFED

किसानों को MSP पर खरीदी, बाजार सुविधा

उर्वरक (Fertilizer)

IFFCO, KRIBHCO

कम दरों पर खाद, कृषि उत्पादन में वृद्धि

ग्रामीण बैंकिंग (Gramin Banking)

PACS, DCCB, SCB

ग्रामीण क्रेडिट, वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion)

सरकारी पहलें (Govt. Initiatives):

  • “सहकार से समृद्धि (Sahakar Se Samriddhi)”, डिजिटल प्लेटफॉर्म, महिला-युवा केंद्रित योजनाएँ
  • प्राथमिक कृषि सहकारी ऋण समितियों (PACS) का डिजिटलीकरण करना
  • PACS को सामान्य सेवाएं केन्द्र रूप में विकसित करने की पहल
  • प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना
  • सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के औपचारिकीकरण योजना

(D) चुनौतियाँ व सुधार (Challenges & Reforms)

प्रमुख चुनौतियाँ:

  1. राजनीतिक हस्तक्षेप: राजनीतिक दल अक्सर सहकारी चुनावों और निर्णय-प्रक्रिया में दखल देते हैं, जिससे संस्थाओं की स्वायत्तता प्रभावित होती है और निर्णय सदस्य हित के बजाय राजनीतिक लाभ के अनुरूप होते हैं।
  2. पारदर्शिता की कमी: अधिकांश सहकारी समितियाँ सदस्य-हित की जानकारी प्रकाशित नहीं करती; महत्वपूर्ण वित्तीय विवरण और चुनाव परिणाम अज्ञात रह जाते हैं, जिससे भरोसा घटता है।
  3. प्रबंधन समस्याएँ: पेशेवर प्रबंधन और विशेषज्ञता का अभाव, अपर्याप्त प्रशिक्षण एवं अनुभव के कारण निर्णय-प्रक्रिया एवं सञ्चालन में त्रुटियाँ होती हैं।
  4. भ्रष्टाचार एवं अनियमितताएँ: आंतरिक लेखा-जोखा तथा अनियमित ऑडिट के अभाव में गड़बड़ियाँ बढ़ती हैं। 
  5. डिजिटल डिवाइड: ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के बीच इंटरनेट पहुँच में बड़ा अंतर: ग्रामीण घरों में 36.5% ही इंटरनेट उपलब्धता, शहरी में 62.4%
  6. तकनीकी उपकरणों, बैंडविड्थ तथा डिजिटल साक्षरता की कमी से सहकारिता कार्यों का डिजिटलीकरण प्रभावित होता है।

सुधार के सुझाव

1. बाहरी ऑडिट (External Audit)

  • बहु-राज्य सहकारी समिति (संशोधन) अधिनियम (2023) के अंतर्गत केंद्रीय रजिस्ट्रार द्वारा स्वीकृत पैनल से –
    • 500 करोड़ तक वार्षिक कारोबार/जमा वाले को नियमित ऑडिट
    • 500 करोड़ से अधिक वाले को समवर्ती (Concurrent) ऑडिट लागू करना (प्रारंभिक धोखाधड़ी शीघ्र पकड़ने हेतु)

2. कार्यकुशलता सुधार (Performance Enhancement): ई-रजिस्ट्रेशन व मोबाइल एप्लिकेशन से कार्यप्रवाह तेज एवं ट्रैकिंग योग्य बनाना। इससे सूक्ष्म स्तर पर भी संगठनों की जवाबदेही बढ़ेगी तथा सरकारी सेवाएँ सहज पहुंच में रहेंगी।

3. महिला और युवा नेतृत्व (Leadership by Women/Youth): कार्यकारी बोर्ड में महिला और युवा प्रतिनिधित्व अनिवार्य करने हेतु आरक्षण लागू करना। यह नए दृष्टिकोण, नवाचार तथा समाज-संपर्क क्षमता बढ़ाने में सहायक होगा।

4. योग्यता व प्रशिक्षण (Capacity Building and Training): कॉपरेटिव सूचना अधिकारी (CIO) एवं अन्य संचालित पदाधिकारियों हेतु राष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना। कार्यशालाओं के माध्यम से प्रबंधन, वित्तीय नियोजन एवं डिजिटल उपकरणों का व्यावहारिक प्रशिक्षण सुनिश्चित करना।

(E) सामाजिक-आर्थिक महत्त्व (Socio-Economic Importance)

  • ग्रामीण रोजगार सृजन (Rural Employment Generation): भारत में सहकारी समितियाँ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से ग्रामीण रोजगार के प्रमुख स्रोत हैं। नेशनल कोऑपरेटिव यूनियन ऑफ इंडिया के अनुसार, सहकारी क्षेत्र ने 5 मिलियन से अधिक स्थायी एवं अस्थायी रोजगार अवसर सृजित किए हैं।
  • वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion): सहकारी बैंक और सहकारी क्रेडिट समितियाँ ग्रामीण और वंचित जनसंख्याओं को बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराकर वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देती हैं। शोध दर्शाता है कि 62% सहकारी सदस्यों को नियमित बैंकों की तुलना में किफायती ऋण एवं बचत सेवाएँ प्राप्त करना आसान होता है।
  • महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment): बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के बोर्डों में महिलाओं के लिए आरक्षण से निर्णय-प्रक्रिया में उनकी भागीदारी बढ़ी है। राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम (NCDC) की “नंदिनी सहकार” योजना के तहत ₹5,714.88 करोड़ वित्तीय सहायता से 1.56 करोड़ से अधिक महिलाओं को लाभान्वित किया गया है।
  • कृषि सुधार, उद्यमिता और स्थायी विकास (Agricultural Reform, Entrepreneurship, Sustainable Development): कृषि सहकारी समितियाँ किसानों को सस्ता इनपुट, संयुक्त विपणन, मूल्य स्थिरीकरण और आधुनिक तकनीक उपलब्ध कराकर कृषि उत्पादकता एवं सतत विकास को बढ़ावा देती हैं। उदाहरण के लिए, कृषि-सहकारी मॉडल छोटे किसानों को साझा संसाधन एवं बायो-फर्टिलाइज़र जैसी पर्यावरण-अनुकूल विधियाँ अपनाने में सक्षम बनाता है।

(F) परीक्षा के लिए मुख्य बिंदु (Key UPSC Points)

  • राष्ट्रीय सहकारी नीति 2025 ने सहकारिता क्षेत्र को पारदर्शी और डिजिटल (Transparent & Digital) बनाने का मार्ग खोला।
  • संविधानिक संरचना (Constitutional Structure): राज्य सूची (State List), 97वां संशोधन (97th Amendment)
  • ग्रामीण-शहरी समावेश (Rural-Urban Linkage) और आत्मनिर्भर भारत (Aatmanirbhar Bharat)

(G) अभ्यास प्रश्न (Practice Questions)

प्रीलिम्स MCQ

Q. “राष्ट्रीय सहकारी नीति 2025” के अंतर्गत क्या प्रमुख उद्देश्य नहीं है?

A. पेशेवर प्रबंधन (Professional Management)B. डिजिटल पारदर्शिता (Digital Transparency)C. निजी एकाधिकार का संवर्धन (Promotion of Private Monopoly)D. समावेशी विकास (Inclusive Development)

उत्तर (Answer): C. निजी एकाधिकार का संवर्धन (Promotion of Private Monopoly)

मुख्य परीक्षा का प्रश्न (Mains Question) – उत्तर रूपरेखा (Answer Outline)

Q. भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में सहकारी संस्थाओं (Cooperatives) की भूमिका एवं राष्ट्रीय सहकारी नीति 2025 (National Cooperative Policy 2025) के प्रभावों का विश्लेषण करें।

  1. भूमिका: सहकारिता का परिचय एवं ऐतिहासिक दर्श
  2. संरचना व क्षेत्रीय विस्तार, केसेस/डेटा
  3. नई नीति की विशेषताएँ
  4. सामाजिक-आर्थिक योगदान: महिला, ग्रामीण रोजगार, कृषि उद्यमिता
  5. चुनौतियाँ व सुधार के सुझाव
  6. स्थायी विकास और भारत@2047 आकांक्षा के लिए सहकारिता की भूमिका

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(H) Quick Revision Table

नीति/पहल (Policy/Initiative)

उद्देश्य (Objective)

प्रभाव (Impact)

डिजिटल गवर्नेंस (Digital Gov.)

पारदर्शिता, ऑडिट

सभी स्तर

महिला/युवा समावेश (Women/Youth Inclusion)

व्यवसायिक अवसर, लोन

ग्रामीण-शहरी

पेशेवर प्रशिक्षण (Professional Training)

दक्षता, कार्यकुशलता

सहकारी समितियाँ

स्थानिक लचीलापन (Local Flexibility)

राज्यों के अनुसार नीति

राज्य/जिला स्तर

निष्कर्ष / Way Forward

राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 भारत के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की एक महत्वाकांक्षी योजना है। यह नीति न केवल सहकारी क्षेत्र के आधुनिकीकरण पर केंद्रित है, बल्कि विकसित भारत 2047 के व्यापक लक्ष्य में इसकी भूमिका को भी परिभाषित करती है। UPSC अभ्यर्थियों के लिए यह नीति विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शासन, अर्थव्यवस्था, कृषि, और सामाजिक न्याय के विभिन्न पहलुओं को एक साथ लाती है। इस नीति का गहन अध्ययन न केवल प्राथमिक और मुख्य परीक्षा के लिए उपयोगी है, बल्कि साक्षात्कार के दौरान भी प्रासंगिक हो सकता है। "सहकार से समृद्धि" का यह मंत्र भारत की सामुदायिक परंपराओं और आधुनिक विकास आकांक्षाओं के बीच एक सेतु का काम करता है, जो इसे UPSC की दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण बनाता है।

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