भूमिका/Introduction
आज के दौर में, जब शासन के समक्ष आर्थिक विकास और नैतिकता के बीच संतुलन बनाने की चुनौती है, दर्शनशास्त्र आधारभूत नैतिक दिशा-निर्देश प्रदान करता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानववाद (Integral Humanism) भारत के लिए एक विशिष्ट और समग्र शासन दर्शन है, जो समग्र विकास और मानवीय गरिमा पर जोर देता है। यह दर्शन भारत के विकास लक्ष्यों, विशेषकर 2047 तक विकसित भारत के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। इस ब्लॉग में एकात्म मानववाद के सिद्धांतों, आधुनिक शासन में इसके प्रयोग और UPSC अभ्यर्थियों के लिए इसकी नैतिक महत्ता का विश्लेषण किया गया है।
एकात्म मानववाद
इसे पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने 1965 में प्रतिपादित किया, यह दर्शन सार रूप में भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों में निहित एक समग्र और संतुलित विकास मॉडल प्रस्तुत करता है। पश्चिमी व्यक्तिवाद के विपरीत यह दर्शन व्यक्ति, समाज और प्रकृति के अभिन्न संबंध पर बल देता है।
एकात्म मानववाद (Integral Humanism) क्या है?
- यह दर्शन निम्नलिखित तीन सिद्धांतों पर आधारित है;
- समष्टि की प्रधानता,
- धर्म की सर्वोच्चता, और
- समाज की स्वायत्तता।
- यह दर्शन एकता और सद्भाव पर बल देता है।
- यह शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा को समान महत्व देने की बात करता है। वास्तव में इन चारों का संतुलित विकास ही सार्थक जीवन का आधार माना गया है।
- एकात्म मानववाद के सिद्धांत के अनुसार, प्रत्येक देश की एक विशिष्ट संस्कृति और सामाजिक मूल भावना होती है, जिसे ‘चिति’ कहा जाता है। इसके साथ ही, प्रत्येक समाज की कुछ विशेष संरचनात्मक विशेषताएं होती हैं, जिन्हें ‘विराट’ के रूप में जाना जाता है।
एकात्म मानववाद की समकालीन प्रासंगिकता:
- समग्र विकास: भौतिक प्रगति के साथ आध्यात्मिक व सांस्कृतिक विकास का संतुलन।
- मानवीय गरिमा: प्रत्येक व्यक्ति की अंतर्निहित महत्ता को मान्यता देते हुए विशेषकर पिछड़े और वंचित वर्गों (अंत्योदय) का उत्थान।
- स्वदेशी (स्वावलंबन): भारत की विशिष्ट आवश्यकताओं एवं संसाधनों पर आधारित आत्मनिर्भर आर्थिक और सामाजिक प्रणाली।
- विकेन्द्रित शासन: स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाकर सहभागी एवं समावेशी निर्णय-प्रक्रिया को प्रोत्साहन।
- सहभागिता आधारित शासन-प्रणाली: इस दर्शन के अनुसार परिवार से लेकर शासन तक, सभी संस्थाएं समुचित और समन्वित ढंग से संचालित होनी चाहिए।
- आत्मनिर्भर और विकेंद्रीकृत आर्थिक मॉडल: इसमें गांव को विकास का केंद्र माना गया है।
- नीति निर्माण: अंत्योदय का विचार और सर्वजन हिताय की भारतीय परंपरा को इस दर्शन के मूल में रखा गया है।
- संधारणीय उपयोग: यह दर्शन श्रम, प्राकृतिक संसाधनों और पूंजी का ऐसा संतुलित उपयोग करने पर बल देता है जिससे हर व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर मिल सके।
- पर्यावरणीय न्याय: यह संधारणीय तरीके से प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग और डीप इकोलॉजी के सिद्धांतों को बढ़ावा देता है।
- डीप इकोलॉजी एक प्रकार का पर्यावरणीय दर्शन है जो प्रकृति को केवल मानव उपयोग के संसाधन के रूप में नहीं, बल्कि उसकी स्वाभाविक एवं अंतर्निहित मूल्य के साथ अस्तित्वमान मानता है।
- सांस्कृतिक विरासत: यह भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और उसे बढ़ावा देने का समर्थन करता है।
नैतिकता/नीतिशास्त्र/Ethics (GS-IV) की दृष्टि से यह दर्शन करुणा, जवाबदेही और पारदर्शिता पर बल देता है, जिससे सामाजिक कल्याण को प्राथमिकता मिलती है। यह पश्चिमी उपयोगितावाद (Utilitarianism) से भिन्न है, जो केवल समष्टि के सुख को प्रधान मानता है, और भारतीय समाज (GS-I) की बहुलवादी प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाता है।
करेंट अफेयर्स का मुद्दा
भारत की विकास नीतियों में एकात्म मानववाद की उपस्थिति स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है, जहां पॉलिसी निर्माता इस दर्शन को निम्नलिखित क्षेत्रों में मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में अपनाते दिखे हैं:
- कल्याणकारी योजनाएँ: प्रधानमंत्री जनधन योजना (PMJDY) और आयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रम अंत्योदय के सिद्धांत पर आधारित हैं, जो वित्तीय समावेशन (RBI वित्तीय समावेशन सूचकांक) और सर्वसुलभ स्वास्थ्य सेवा प्रदान करते हैं।
- सांस्कृतिक राष्ट्रवाद: भारत के सांस्कृतिक विरासत को प्रोत्साहन देना, जैसे 2025 में सेतुबंध स्कॉलर योजना ने किया, जिसके माध्यम से पारंपरिक गुरुकलों से पढ़े अभ्यर्थी IITs में शोध कर पाएंगे।
- सतत विकास की पहल: राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, मैंग्रोव संरक्षण जैसी परियोजनाएँ आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संरक्षण के बीच सामंजस्य स्थापित करती हैं, जो SDG लक्ष्यों के अनुरूप हैं।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के मुद्दे पर बहसें भी चल रही हैं, जिसमें आलोचक कहते हैं कि अत्यधिक राष्ट्रवादी विचारधारा अल्पसंख्यकों को अलग-थलग कर सकती है, जबकि समर्थक इसे एक सांस्कृतिक एकता का आधार मानते हैं। जुलाई 2025 की चर्चा इस संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
- एकात्म मानववाद पश्चिमी व्यक्तिवाद दर्शन के विपरीत है, जो सामूहिक कल्याण और आध्यात्मिक विकास पर आधारित है।
- अंत्योदय का दर्शन (सबसे कमजोर के उत्थान) प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना जैसे बड़े सामाजिक कार्यक्रमों में प्रतिबिंबित होता है।
- यह नीति निर्माण में SDG 1 (गरीबी उन्मूलन), SDG 3 (स्वास्थ्य), SDG 11 (सतत शहर) जैसे विश्व लक्ष्यों के साथ संगत है।
- एकात्म मानववाद न केवल सांस्कृतिक मंत्रालय बल्कि नीति आयोग जैसे प्रमुख संस्थानों के कार्यों में झलकता है।
- UPSC के सवालों में 2021 के मेन्स प्रश्न “आधुनिक शासन में भारतीय दार्शनिक परंपराओं की प्रासंगिकता” इस विचारधारा का उल्लेख करता है।
UPSC परीक्षा-प्रासंगिकता (Relevance for UPSC)
- GS-IV (Ethics): नैतिक शासन के लिए एकात्म मानववाद के मूल्य और सिद्धांत जरूरी हैं।
- GS-I (Indian Society): सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक दृष्टिकोण।
- GS-II (Governance): भारत-विरासत की नीति और शासन में नैतिकता की भूमिका।
- Essay & Mains: भारत के विकास में दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन का विश्लेषण।
अभ्यास प्रश्न (Practice Questions)
मुख्य परीक्षा (Mains):
समकालीन भारत के शासन और विकास के संदर्भ में एकात्म मानववाद दर्शन एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य कर रहा है। एकात्म मानववाद के नैतिक और सामाजिक महत्व का मूल्यांकन करें।
प्रीलिम्स MCQ:
Q. निम्न में से कौन एकात्म मानववाद के मूल तत्वों में सम्मिलित नहीं है?
A) अंत्योदय और समावेशी विकासB) केंद्रीयकृत शासन प्रक्रियाएँC) स्वदेशी और आत्मनिर्भरताD) सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्य
उत्तर: B) केंद्रीयकृत शासन प्रक्रियाएँ
निष्कर्ष / Conclusion
एकात्म मानववाद भारत के शासन का नैतिक और सांस्कृतिक आधार प्रस्तुत करता है, जो विकास के सभी आयामों—आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक—के बीच संतुलन स्थापित करता है। यह दर्शन न केवल लोककल्याणकारी नीतियों की नींव है, बल्कि वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों की पूर्ति में भी सहायक है। UPSC के लिए यह विषय नैतिकता, समाज, शासन और नीति सम्बन्धी प्रश्नों का समृद्ध स्रोत है।
संदर्भ एवं अध्ययन सामग्री (Sources & Resources)